बचपन में अक्सर बुजुर्गों को आपस में
अपने अपने रिश्तेदारों का परिचय एक दूसरे को
बताते सुनते थे| गांव में जब भी कोई व्यक्ति अपने बच्चों का
किसी नयी जगह रिश्ता करके आता था तो गांव के सभी बुजुर्ग उससे
उस रिश्तेदार के बारे में पूरी जानकारी लेते थे खानदान से लेकर
अर्थव्यवस्था तक| आपसी इन्हीं बातचीत में
सुनते थे कि - फलां रिश्तेदार के पास बहुत (कोई संख्या) जमीन जायदाद है, बताने वाले से बुजुर्ग अक्सर
पूछते - "जमीन भाई बंट की ही है या बाढ़ की ? उतर में यदि "बाढ़ की जमीन" भी है, सुनते ही बुजुर्गों के
मन में उस रिश्तेदार के प्रति जो आदर का भाव उठता वह उनके चेहरे पर साफ पढ़ा जा सकता था| पर
जमीन यदि सिर्फ "भाई बंट" की है सुनकर कभी किसी के चेहरे पर वो भाव नहीं देखे|
बाढ़ की जमीन किसी के पास होने पर उस परिवार के प्रति लोगों के मन में जो आदर के भाव उठते वो बचपन में हम समझ नहीं पाते थे साथ ही बाढ़ शब्द सुनकर यही अनुमान लगा लेते कि- "उनकी उस जमीन पर कभी बाढ़ आई होगी और बाढ़ के साथ खाद आदि आने से उस भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ने से जिसके पास बाढ़ की भूमि है उसकी अच्छी कीमत होती होगी|"
पर जब उत्सुकतावश दादाजी से इस सम्बन्ध में पूछा तो पता चला कि - "बाढ़ की भूमि उसे कहते है जो सिर कटवाने पर मिलती है| भाई बंट की जमीन तो सबको मिलती है पर बाढ़ की भूमि तो राज्य से उसे ही मिलती है जिसने वीरतापूर्वक लड़ते हुए अपने वतन के लिए अपना सिर कटवाया हो| और इसी लिए उस परिवार के प्रति हरेक के मन में आदर प्रकट होता है|"
आज जिस तरह से देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए हमारे देश के जवान शहीद होते है तब सरकार उनके बच्चों के भरण-पोषण के लिए गैस एजेंसियां व पेट्रोल पम्प आदि आवंटित कर एक तरह से उस शहीद की शहादत का इनाम देती है|
ठीक इसी तरह राजा महाराजा भी अपने सैनिकों के बलिदान से खुश होकर और उसकी भावी पीढ़ियों के भरण-पोषण के लिए जमीन आवंटित करते थे जिसे बाढ़ की भूमि कहा जाता था| जिस परिवार के पास बाढ़ की यह भूमि होती थी उसका समाज में बहुत आदर होता था कि ये भूमि उन्हें देश के लिए त्याग करने और पुरुषार्थ के बल पर मिली है|
अपने अपने रिश्तेदारों का परिचय एक दूसरे को
बताते सुनते थे| गांव में जब भी कोई व्यक्ति अपने बच्चों का
किसी नयी जगह रिश्ता करके आता था तो गांव के सभी बुजुर्ग उससे
उस रिश्तेदार के बारे में पूरी जानकारी लेते थे खानदान से लेकर
अर्थव्यवस्था तक| आपसी इन्हीं बातचीत में
सुनते थे कि - फलां रिश्तेदार के पास बहुत (कोई संख्या) जमीन जायदाद है, बताने वाले से बुजुर्ग अक्सर
पूछते - "जमीन भाई बंट की ही है या बाढ़ की ? उतर में यदि "बाढ़ की जमीन" भी है, सुनते ही बुजुर्गों के
मन में उस रिश्तेदार के प्रति जो आदर का भाव उठता वह उनके चेहरे पर साफ पढ़ा जा सकता था| पर
जमीन यदि सिर्फ "भाई बंट" की है सुनकर कभी किसी के चेहरे पर वो भाव नहीं देखे|
बाढ़ की जमीन किसी के पास होने पर उस परिवार के प्रति लोगों के मन में जो आदर के भाव उठते वो बचपन में हम समझ नहीं पाते थे साथ ही बाढ़ शब्द सुनकर यही अनुमान लगा लेते कि- "उनकी उस जमीन पर कभी बाढ़ आई होगी और बाढ़ के साथ खाद आदि आने से उस भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ने से जिसके पास बाढ़ की भूमि है उसकी अच्छी कीमत होती होगी|"
पर जब उत्सुकतावश दादाजी से इस सम्बन्ध में पूछा तो पता चला कि - "बाढ़ की भूमि उसे कहते है जो सिर कटवाने पर मिलती है| भाई बंट की जमीन तो सबको मिलती है पर बाढ़ की भूमि तो राज्य से उसे ही मिलती है जिसने वीरतापूर्वक लड़ते हुए अपने वतन के लिए अपना सिर कटवाया हो| और इसी लिए उस परिवार के प्रति हरेक के मन में आदर प्रकट होता है|"
आज जिस तरह से देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए हमारे देश के जवान शहीद होते है तब सरकार उनके बच्चों के भरण-पोषण के लिए गैस एजेंसियां व पेट्रोल पम्प आदि आवंटित कर एक तरह से उस शहीद की शहादत का इनाम देती है|
ठीक इसी तरह राजा महाराजा भी अपने सैनिकों के बलिदान से खुश होकर और उसकी भावी पीढ़ियों के भरण-पोषण के लिए जमीन आवंटित करते थे जिसे बाढ़ की भूमि कहा जाता था| जिस परिवार के पास बाढ़ की यह भूमि होती थी उसका समाज में बहुत आदर होता था कि ये भूमि उन्हें देश के लिए त्याग करने और पुरुषार्थ के बल पर मिली है|
No comments:
Post a Comment